हिन्दी ब्लागिंग की दुनिया भी अद्भुत है, यहां लगभग सभी विषयों पर लिखने वाले सिद्धहस्त लेखक व कवि विद्यमान है। हिन्दी ब्लाग आज खुब मात्रा में लिखे जा रहे हैं व उन पर कमेन्ट्स भी देखने को मिलते है, परन्तु यह भी कटु सत्य है कि जितने ब्लाग राईटर्स हैं लगभग उतने ही उसके पाठक हैं, यानि कि इस विधा से जुड़े लोग ही एक-दसरे के ब्लाग्स पर परस्पर कमेन्ट्स लिखते हैं जो कि सही मायने में इन रचनाओं के स्तर के अनुरूप पर्याप्त मात्रा में नहीं है। जिस प्रकार से दूसरे संचार माध्यम पर्याप्त मात्रा में पाठक व दर्शक जुटाने में कामयाब रहते हैं वैसे ही हिन्दी ब्लाग जगत का भी कोई एक सांझा मंच होना चाहिए जिसके प्रचार व प्रसार से रचनाओं के स्तर के अनुरूप पाठक उपलब्ध कराये जा सके। तब ही ब्लाग जगत के आलोचकों को करारा जवाब हम दे पायेंगे।
जनवरी 26, 2012
मार्च 02, 2011
केविन ओब्रायन का विश्व रिकार्ड व आयरलैण्ड का उलटफेर याद रहेगा।
क्रिकेट का खेल अपनी अनिश्चितता व रोमांच के लिए जाना जाता है इस लोकोक्ति को अधिक दृढ व सत्य सिद्ध करने के लिए आयरलैण्ड व इंग्लैण्ड के मैच का भी उदाहरण दिया जायेगा। आयरलैण्ड के केविन ओब्रायन ने इंग्लैण्ड के विरूद्ध विश्व कप क्रिकेट का सर्वाधिक तेज शतक 50 गेंदों में बनाकर न केवल विश्व रिकार्ड अपने नाम किया बल्कि अपनी टीम को भी विश्व कप इतिहास में रनों का पीछा करते हुए सर्वाधिक रन बनाने के विश्व रिकार्ड के साथ विजय दिलाई। केविन ओब्रायन ने 63 गेंदों में 113 रन बनाये और इस शानदार पारी में 6 छक्के व 13 चोके लगाये उन्हे मैन आफ द मैच घोषित किया गया। बेंगलुरू के दर्शकों ने भारत व इंग्लैण्ड मैच के टाई होने के बाद लगातार दूसरे रोमांचक मैच का आनन्द लिया व इस प्रकार विश्व क्रिकेट जगत को एक नया स्टार बल्लेबाज व स्टार देश मिल गया। आयरलैण्ड के लिए एक स्वर्णिम दिन विश्व क्रिकेट में हमेशा याद रखा जायेगा। आयरलैण्ड ने इस जीत के साथ ही आगामी मैचों के लिए अपने से अधिक मजबूत माने जाने वाले टीमों में जिसमें भारत, साउथ अफ्रिका व वेस्टइंडिज को सजग रहने की चुनौती पेश कर दी है।
सितंबर 02, 2010
वीरेन्द्र सहवाग को कप्तानी क्यों नहीं ???
विश्व क्रिकेट में अपनी विस्फोटक बल्लेबाजी के कारण शोहरत के शिखर का आरोहण करने वाले मुल्तान के सुल्तान के नाम से प्रसिद्ध भारतीय ओपनर बल्लेबाज वीरेन्द्र सहवाग के नेतृत्व में ही भारत को अगला विश्व कप खेलना चाहिए। गौरतलब है कि हाल ही में श्रीलंका में सम्पन्न त्रिकोणीय वन-डे श्रृंखला व टेस्ट सीरिज दोनो में ही सहवाग ने मैन आफ द सीरिज का खिताब हासिल किया।
वे दो बार 2008 व 2009 में विज्डन लीडिंग क्रिकेटर आफ द इयर हासिल कर चुके हैं। विपक्षी टीम के गेंदबाज पर पहली ही गेंद से अपने आक्रामक प्रहार से हावी होने वाले सहवाग विश्व क्रिकेट में अपना लोहा मनवा चुके हैं। वन-डे में 13 शतकों, 36 अर्धशतकों के अतिरिक्त वीरू ने 92 विकेट भी हासिल कर अपनी आल राउण्डर प्रतिभा का बखूबी प्रदर्शन किया है। वर्तमान में सहवाग वन-डे रेकिंग में 8वें स्थान पर काबिज है।
पिछले वर्ष टेस्ट मैच में भी सहवाग का स्ट्राइक रेट 100 से अधिक रहा है व 290 रन तीन बार से अधिक बनाने वाले टेस्ट क्रिकेट में विश्व के एकमात्र बल्लेबाज हैं। टी-20 व वन-डे में तो सहवाग के आक्रामक प्रहार दर्शनीय होते ही है, बल्कि टेस्ट में भी सहवाग जब बल्लेबाजी कर रहे होते हैं तो भी दर्शकों को वैसा ही आनन्द आता है व यही कारण है कि 278 गेंदों में सबसे तेज तिहरा शतक लगाने रिकार्ड सहवाग के नाम दर्ज है।
अभी वे अपनी फार्म के यौवन पर है अतः उनके अनुभव, टीम को शुरूआत से ही नेतृत्व देने की बेहतरीन योग्यता व मैच विजेता पारी खेलने के हुनर के बुते उन्हे ही टीम इंडिया की कप्तानी सोंपनी चाहिए ताकि भारत वन-डे विश्व कप को दूसरी बार अपनी झोली में डाल सके।
अगस्त 01, 2010
कौन चीखता है तेरे जुल्मतों भरे हिसारों से।
समझ ना सका मैं तेरे दर पर लगी कतारों से,
रोशनी की उम्मीद कर बैठा गर्दिशमय सितारों से।
हमसफर ही तंग दिल मिला था मुझको,
किस कदर फरीयाद करता मैं इन बहारों से।
कौन रूकेगा इस सरनंगू शजर के नीचे,
जो खुद टिका हो बेजान इन सहारों से।
आंखों के आब को अजान देते रहते हैं जो,
लम्हा-लम्हा मांगता रहा समर इन रेगजारों से।
नामो-निशां भी मिटा चुका हूं तेरा इस दिल से,
तो किस कदर गुजरू तेरे दर के रहगुजारों से।
मेरी चाहत तो खला में खो चुकी है अब,
वक्त गुजर रहा है ”हर्ष” इन शुमारों से।
तुम्हारी खुशी का सीना किसने चीरा दिलावर,
कौन चीखता है तेरे जुल्मतों भरे हिसारों से।
जनवरी 26, 2010
भारत देश में “खेल-क्रान्ति” आखिर कब आयेगी ???
विश्व की जनसंख्या में द्वितीय स्थान व क्षेत्रफल के लिहाज से सातवां स्थान रखने वाले देश भारत का पदक तालिका के अनुसार २००८ बीजिंग ओलम्पिक खेलों में ५०वां, २००६ दोहा एशियन खेलों में ९वां व २००६ राष्ट्रमण्डल खेलों में भी ४था स्थान प्राप्त करना निश्चित ही देश की खेलों के प्रति जागरूकता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। आखिर ऐसी क्या सुविधाएं हैं जो हम अपने खेलों को उपलब्ध नहीं करा सकते हैं ? क्या देश में प्रतिभाओं की कमी है या फिर हम अपने देश को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति नहीं दिलाना चाहते हैं। प्रत्येक भारतवासी की यह ख्वाहिश है कि ओलम्पिक में जिस प्रकार से तिरंगा सबसे ऊपर आसीन था व राष्ट्र-गान के बाद अभिनव बिन्द्रा के गले में गोल्ड मेडल पहनाया गया, ऐसे सुखद और गोरवान्वित करने वाले दृश्य बार-बार देखे।
पर ऐसा इस विशाल देश के खेल प्रेमियों को बहुत ही कम देखने को नसीब हुआ है और होता यही है कि प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय खेल आयोजन के बाद शर्मनाक व खेदजनक प्रदर्शन की आलोचना हेतु प्रिन्ट मिडिया, इलेक्ट्रोनिक मिडिया व संसद में असफलता के आरोप-प्रत्यारोप लगने शुरू हो जाते हैं। कहीं पर सरकार की खेल नीति का दोष, कहीं खेल संगठनों का दोष, तो कहीं पर कोच व खिलाङियों को भी निशाना बनाया जाता है। यदि इस ऊर्जा को हम सकारात्मक रूप से खेल आयोजन से पहले इस्तेमाल करें व पूर्व में ही खेलों की समालोचना, सूक्ष्म अन्वेषण व गहन शोध कर खिलाङियों में राष्ट्रीय गौरव व राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिए खेलने जैसी भावनाओं का उदय किया जाये व खिलाङियों को वांछित सम्मान दिलायें तो निश्चित ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ये खिलाङी तिरंगे की शान बढायेंगे।
देश के खेल मन्त्रालय, खेल नीतिकार, खेल प्रशासक व मिडिया जगत को खेल ढांचे में आमूल चूल परिवर्तन करना होगा तथा ये आमूल चूल परिवर्तन तब ही आ सकता है जब जिला स्तर, राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर पर खेलों के चयन में होने वाली धांधलेबाजी को रोक कर उभरती हुई युवा प्रतिभाओं को समुचित अवसर दिया जाए। खिलाङियों का शोषण बन्द हो व आर्थिक दृष्टि से पिछङे हुए खिलाङियों को आर्थिक मदद दी जाए या उन्हे रोजगार उपलब्ध करवाया जाए, तभी ये खिलाङी चिन्तामुक्त होकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पायेंगे। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने पर सरकार द्वारा दी जाने वाली इनामी राशि बढायी जाए। नयी खेल नीति बनाकर राजनीतिज्ञ का खेलों से हस्तक्षेप हटा दिया जाए। इस प्रकार का सकारात्मक रवैया व ठोस कदम उठा कर ही देश में कोई ”खेल क्रान्ति” लायी जा सकती है व इस क्रान्ति की प्रथम परख अक्टूबर-२०१० राष्ट्रमण्डल खेल, नई दिल्ली में हो जायेगी। फिर पूरा देश नवम्बर-२०१० गुआंगजौ एशियन खेल व लंदन-२०१२ ओलम्पिक खेल पर पदक तालिका में भारत का स्थान ऊँचा होने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है।
वास्तव में यदि सही प्रतिभा का चयन, कुशल प्रशिक्षण, दृढ निश्चय व देश के लिए कुछ करने की तमन्ना हो तो वो दिन दूर नहीं जब भारत में अनेक अभिनव बिन्द्रा, राज्यवर्द्धन सिंह, लिएन्डर पेस, विजेन्द्र कुमार, कर्णम मल्लेश्वरी व सुशील कुमार सरीखे युवा खिलाङी अपने उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन से देश को और भी अधिक गोरवान्वित करेंगे।
वास्तव में यदि सही प्रतिभा का चयन, कुशल प्रशिक्षण, दृढ निश्चय व देश के लिए कुछ करने की तमन्ना हो तो वो दिन दूर नहीं जब भारत में अनेक अभिनव बिन्द्रा, राज्यवर्द्धन सिंह, लिएन्डर पेस, विजेन्द्र कुमार, कर्णम मल्लेश्वरी व सुशील कुमार सरीखे युवा खिलाङी अपने उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन से देश को और भी अधिक गोरवान्वित करेंगे।
लेबल:
एशियन खेल,
ओलम्पिक खेल,
राष्ट्रमण्डल खेल
जनवरी 16, 2010
तोङने में हार है, प्रेम के पथिक की, जोङना ही जीत का आगाज होता है।
परिवर्तन वक्त का मिजाज होता है,
यह हर सम्बन्ध का हमराज होता है।
जहाँ को देता है मीठी सुर लहरी,
जब अंतस् से दर्दीला साज होता है।
मन को लुभाता है तितली-सा बहकना,
पर उसूलों से बंधा बाज होता है।
सहता है नदी का वियोग वो हर पल,
उस पर्वत की अडिगता पर नाज होता है।
तोङने में हार है, प्रेम के पथिक की,
जोङना ही जीत का आगाज होता है।
दिसंबर 30, 2009
नव वर्ष की अल्स्साबह पहला प्यार मिल जाये
नव वर्ष की अल्स्साबह पहला प्यार मिल जाये।
रब करे, हलक में अटका शब्द निकल जाये।
प्यार से भी प्यारा, जीवन का हो सहारा,
हर्षातिरेक से सहृदय के कुछ आंसू छलक जाये।
ब्लॉग में हृदयस्पर्शी कोई टिप्पणी मिल जाये।
चिट्ठों की ब्लॉगवाणी गूंजे, भङास निकल जाये।
स्वयं सम्पादक दे विषय लिखने को ’कवि हृदय‘
लेखनी की वर्षो पुरानी हसरत निकल जाये।
सरकारी अवकाश न आये इतवार के दिन,
सिर्फ आकस्मिक अवकाश में २०१० निकल जाये।
अतिरिक्त चार्ज से डिस्चार्ज न हो निज ऊर्जा,
बकाया एरीयर, उधार, टी.ए.-मेडीकल मिल जाये।
अपडेट रहे जीवन का एन्टी वायरस सदा,
डेली रूटीन सदैव डीफ्रेगमेन्ट हो जाये।
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