जनवरी 26, 2010

भारत देश में “खेल-क्रान्ति” आखिर कब आयेगी ???











विश्व की जनसंख्या में द्वितीय स्थान व क्षेत्रफल के लिहाज से सातवां स्थान रखने वाले देश भारत का पदक तालिका के अनुसार २००८ बीजिंग ओलम्पिक खेलों में ५०वां, २००६ दोहा एशियन खेलों में ९वां व २००६ राष्ट्रमण्डल खेलों में भी ४था स्थान प्राप्त करना निश्चित ही देश की खेलों के प्रति जागरूकता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। आखिर ऐसी क्या सुविधाएं हैं जो हम अपने खेलों को उपलब्ध नहीं करा सकते हैं ? क्या देश में प्रतिभाओं की कमी है या फिर हम अपने देश को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति नहीं दिलाना चाहते हैं। प्रत्येक भारतवासी की यह ख्वाहिश है कि ओलम्पिक में जिस प्रकार से तिरंगा सबसे ऊपर आसीन था व राष्ट्र-गान के बाद अभिनव बिन्द्रा के गले में गोल्ड मेडल पहनाया गया, ऐसे सुखद और गोरवान्वित करने वाले दृश्य बार-बार देखे।
      पर ऐसा इस विशाल देश के खेल प्रेमियों को बहुत ही कम देखने को नसीब हुआ है और होता यही है कि प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय खेल आयोजन के बाद शर्मनाक व खेदजनक प्रदर्शन की आलोचना हेतु प्रिन्ट मिडिया, इलेक्ट्रोनिक मिडिया व संसद में असफलता के आरोप-प्रत्यारोप लगने शुरू हो जाते हैं। कहीं पर सरकार की खेल नीति का दोष, कहीं खेल संगठनों का दोष, तो कहीं पर कोच व खिलाङियों को भी निशाना बनाया जाता है। यदि इस ऊर्जा को हम सकारात्मक रूप से खेल आयोजन से पहले इस्तेमाल करें व पूर्व में ही खेलों की समालोचना, सूक्ष्म अन्वेषण व गहन शोध कर खिलाङियों में राष्ट्रीय गौरव व राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिए खेलने जैसी भावनाओं का उदय किया जाये व खिलाङियों को वांछित सम्मान दिलायें तो निश्चित ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ये खिलाङी तिरंगे की शान बढायेंगे।
      देश के खेल मन्त्रालय, खेल नीतिकार, खेल प्रशासक व मिडिया जगत को खेल ढांचे में आमूल चूल परिवर्तन करना होगा तथा ये आमूल चूल परिवर्तन तब ही आ सकता है जब जिला स्तर, राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर पर खेलों के चयन में होने वाली धांधलेबाजी को रोक कर उभरती हुई युवा प्रतिभाओं को समुचित अवसर दिया जाए। खिलाङियों का शोषण बन्द हो व आर्थिक दृष्टि से पिछङे हुए खिलाङियों को आर्थिक मदद दी जाए या उन्हे रोजगार उपलब्ध करवाया जाए, तभी ये खिलाङी चिन्तामुक्त होकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पायेंगे। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने पर सरकार द्वारा दी जाने वाली इनामी राशि बढायी जाए। नयी खेल नीति बनाकर राजनीतिज्ञ का खेलों से हस्तक्षेप हटा दिया जाए। इस प्रकार का सकारात्मक रवैया व ठोस कदम उठा कर ही देश में कोई ”खेल क्रान्ति” लायी जा सकती है व इस क्रान्ति की प्रथम परख अक्टूबर-२०१० राष्ट्रमण्डल खेल, नई दिल्ली में हो जायेगी। फिर पूरा देश नवम्बर-२०१० गुआंगजौ एशियन खेल व लंदन-२०१२ ओलम्पिक खेल पर पदक तालिका में भारत का स्थान ऊँचा होने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है।

      वास्तव में यदि सही प्रतिभा का चयन, कुशल प्रशिक्षण, दृढ निश्चय व देश के लिए कुछ करने की तमन्ना हो तो वो दिन दूर नहीं जब भारत में अनेक अभिनव बिन्द्रा, राज्यवर्द्धन सिंह, लिएन्डर पेस, विजेन्द्र कुमार, कर्णम मल्लेश्वरी व सुशील कुमार सरीखे युवा खिलाङी अपने उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन से देश को और भी अधिक गोरवान्वित करेंगे।
      वास्तव में यदि सही प्रतिभा का चयन, कुशल प्रशिक्षण, दृढ निश्चय व देश के लिए कुछ करने की तमन्ना हो तो वो दिन दूर नहीं जब भारत में अनेक अभिनव बिन्द्रा, राज्यवर्द्धन सिंह, लिएन्डर पेस, विजेन्द्र कुमार, कर्णम मल्लेश्वरी व सुशील कुमार सरीखे युवा खिलाङी अपने उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन से देश को और भी अधिक गोरवान्वित करेंगे।

3 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

वास्तव में यदि सही प्रतिभा का चयन, कुशल प्रशिक्षण, दृढ निश्चय व देश के लिए कुछ करने की तमन्ना हो तो वो दिन दूर नहीं जब भारत में अनेक अभिनव बिन्द्रा, राज्यवर्द्धन सिंह, लिएन्डर पेस, विजेन्द्र कुमार, कर्णम मल्लेश्वरी व सुशील कुमार सरीखे युवा खिलाङी अपने उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन से देश को और भी अधिक गोरवान्वित करेंगे

bilkul sach kaha aapne bas thoda nispaksh ho jaye ye sab fir dekhiye bharat main pratibha ki to koi kami nahi.

sushilharsh ने कहा…

sir
very vary nice

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

गूगल "है बातों में दम" में विजयी होने की बधाई!
आगे भी आपका लेखन उत्तरोत्तर नयी उचाइयां प्राप्त करे!

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